निगेटिव ख़बरों से निराशावाद बढ़ा
जब से कोरोना वायरस का प्रकोप फैलना शुरू हुआ है तब से चारों ओर निराशा का वातावरण दिखाई दे रहा है, अपने आस पास देख लो या टीवी पर या अखबार में या इन्टरनेट पर हर जगह निगेटिव ख़बरें ही सुनाई और दिखाई देती हैं, और कई बार किसी नामी व्यक्ति की ख़बर आजाये जैसे ऋषि कपूर, इरफ़ान खान या फिर अब सुशांत सिंह राजपूत के अकस्मात् निधन की ख़बर ई है, जिससे माहौल और भी निराशावादी हो रहा है,
इंसान ने बड़ी जंगों को जीता |
लेकिन हम ऐसे निराशा के माहौल में कोरोना तो क्या किसी भी जंग से नहीं जीत सकते, हमें पॉजिटिव रहकर ही सबका सामना करना है और जीतना भीही है, क्योंकि प्रकृति ने इंसान को सबसे समझदार जीव बनाया है. और कोरोना हो या उससे बड़ा कोई नर भक्षी हमारे अन्दर सबसे लड़ने की की ताकत इश्वर ने हमें दी है, हमने बड़ी बड़ी मुसीबतों को जीता है, और अब कोरोना की बारी है,
लेकिन इसके लिए हमें आशावादी होना पड़ेगा, उसके लिए हमें अपनी कमियों को दूर करना होगा, गलतियों को पहचानकर सुधारना होगा, कोरोना में उठाये गए कदमो को फिर से जांचकर आगे बढ़ाना होगा,
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कोरोना की चैन तोडना जरुरी
जैसे इस समय कोरोना के मामले 10-10 हज़ार रोज़ बढ़ रहे हैं और कुल आंकड़ा 3 लाख से अधिक हो गया है, तो हमें फिर से एक लोकओन की जरुरत है, जिससे हम कोरोना की चैन को पहचान सकें और तोड़ सके, नहीं तो अगर मामले हाथ से निकल गए तो मरीजों को देखने वाले अस्पताल और डॉक्टर ही नहीं मिलेंगे,
आर्थिक तंगी में सबको देना होगा साथ
दूसरी ओर आर्थिक तंगी और सरकार को चलाने के लिए कर्मचारियों की सेलरी की बात करें तो इसका हल भी निकाला जा सकता है, क्योंकि जब लोकडाउन होता है तो छोटे-बड़े दुकानदार की सभी दुकाने बंद होती हियो, मिडिल क्लास और गरीब की जेब में कुछ नहीं जाता फिर भी वह कोरोना से जंग में सरकार का साथ देता है, ऐसे ही अगर लोकडाउन में सरकार भी अपने और कर्मचारियों के खर्चों में कमी करे तो करोड़ों रुपये बचा सकते हैं और सरकार को आर्थिक मंदी से भी कुछ राहत मिलेगी, जैसे सरकार अपने मंत्रियो और कर्मचारियों को उतने ही पैसे दे जिससे उनका राशन पानी का खर्चा चल सके, जैसे देश के दुसरे आम लोग, दुकानदार और गरीब अपनी जेब से खर्चा चला रहे हैं वैसे ही सरकार और उनके कर्मचारी चला सकते हैं,
दोस्तों कोरोना से लड़ना है तो सबको कुछ न कुछ देना ही होगा नहीं तो हम सबकी जिंदगियां मुसीबत में पढ़ जायंगी,
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