मोटर दुर्घटना से अभिप्राय :-
प्रायः हर व्यक्ति को यात्रा करने के लिए निजी या पब्लिक वाहन का प्रयोग करना पड़ता है । जब किसी वाहन की दुर्घटना होती है तो उसमे सवार व्यक्तिओ को चोटे आना संभव है। कभी कभी मोटर दुर्घटना होने से सवार व्यक्तिओ को गम्भीर चोटे ही नही आती बल्कि मृत्यु भी हो जाती है, जबकि वाहन मे सवार व्यक्तिओ का दोश नही होता, फिर भी ड्राईवर की गलती व लापरवाही के कारण दुर्घटना होने पर वाहन में सवार व्यक्तिओ को नुकसान उठाना पडता है। दो पहिया या चार पहिया वाहन मे सवार व्यक्ति का कोई दोष न होने पर भी मोटर दुर्घटना हो जाती है तो उसकी नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतू मोटर दुर्धटना प्रतिकर विधि 1988 का सृजन किया गया है जिनके अंतर्ग जिस व्यक्ति को मोटर दुर्घटना से नुकसान होता है वह व्यक्ति वाहन चालक, वाहन स्वामी एवं बीमा कम्पनी के विरूद्ध मोटर दुर्धटना दावा न्यायाघिकरण मे पिटीशन दायर करके दुर्घटना में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।इस प्रकार जब किसी व्यक्ति की मोटर दुर्घटना मे मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिवार वालो की और से तथा दुर्धटना मे चोटे आने पर वह व्यक्ति स्वयं न्यायालय मे पिटीशन दायर कर सकता है। इसी प्रकार दो आपसी वाहनो के आपसी टक्कर से मोटर वाहन को भी नुकसान हो सकता है जबकि इसमे दो वाहन के चालक मे एक का कोई दोश नही होता। ऐसी दशा मे दोशी चालक के विरुद्ध दुर्घटना मे जो नुकसान उसके वाहन को हुआ उसकी भरपाई भी न्यायालय मे पिटीशन दायर कर प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार मोटर दुर्घटना से अभिप्राय यही है कि जब किसी चालक द्वारा गलती तथा लापरवाही से वाहन को दुर्घटनाग्रस्त किया जाता है और उसमे सवार व्यक्तिओ को चोटें आती है अथवा किसी की मृत्यु हो जाती है, इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति जो मोटर वाहन मे सवार न भी हो और वह सड़क पर बाई ओर रास्ते पर चल रहा हो और मोटर चालक की लापरवाही के कारण उसकी मृत्यु अथवा उसे चोटे आने से जो क्षति होती है उसकी पूर्ति भी इस अधिनियम के अंतगर्त की जाती है।
प्रायः हर व्यक्ति को यात्रा करने के लिए निजी या पब्लिक वाहन का प्रयोग करना पड़ता है । जब किसी वाहन की दुर्घटना होती है तो उसमे सवार व्यक्तिओ को चोटे आना संभव है। कभी कभी मोटर दुर्घटना होने से सवार व्यक्तिओ को गम्भीर चोटे ही नही आती बल्कि मृत्यु भी हो जाती है, जबकि वाहन मे सवार व्यक्तिओ का दोश नही होता, फिर भी ड्राईवर की गलती व लापरवाही के कारण दुर्घटना होने पर वाहन में सवार व्यक्तिओ को नुकसान उठाना पडता है। दो पहिया या चार पहिया वाहन मे सवार व्यक्ति का कोई दोष न होने पर भी मोटर दुर्घटना हो जाती है तो उसकी नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतू मोटर दुर्धटना प्रतिकर विधि 1988 का सृजन किया गया है जिनके अंतर्ग जिस व्यक्ति को मोटर दुर्घटना से नुकसान होता है वह व्यक्ति वाहन चालक, वाहन स्वामी एवं बीमा कम्पनी के विरूद्ध मोटर दुर्धटना दावा न्यायाघिकरण मे पिटीशन दायर करके दुर्घटना में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है।इस प्रकार जब किसी व्यक्ति की मोटर दुर्घटना मे मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिवार वालो की और से तथा दुर्धटना मे चोटे आने पर वह व्यक्ति स्वयं न्यायालय मे पिटीशन दायर कर सकता है। इसी प्रकार दो आपसी वाहनो के आपसी टक्कर से मोटर वाहन को भी नुकसान हो सकता है जबकि इसमे दो वाहन के चालक मे एक का कोई दोश नही होता। ऐसी दशा मे दोशी चालक के विरुद्ध दुर्घटना मे जो नुकसान उसके वाहन को हुआ उसकी भरपाई भी न्यायालय मे पिटीशन दायर कर प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार मोटर दुर्घटना से अभिप्राय यही है कि जब किसी चालक द्वारा गलती तथा लापरवाही से वाहन को दुर्घटनाग्रस्त किया जाता है और उसमे सवार व्यक्तिओ को चोटें आती है अथवा किसी की मृत्यु हो जाती है, इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति जो मोटर वाहन मे सवार न भी हो और वह सड़क पर बाई ओर रास्ते पर चल रहा हो और मोटर चालक की लापरवाही के कारण उसकी मृत्यु अथवा उसे चोटे आने से जो क्षति होती है उसकी पूर्ति भी इस अधिनियम के अंतगर्त की जाती है।