गुरु अंगद देव जयंती की हार्दिक बधाई
गुरु अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। गुरु अंगद देव महाराज जी का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। उनमें ऐसी अध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख और फिर एक महान गुरु बनें। गुरु अंगद देव ‘लहिणा जी‘ भी कहलाते हैं। ये पंजाबी लिपि गुरुमुखी के जन्मदाता हैं, जिसमें सिक्खों की पवित्र पुस्तक आदिग्रंथ के कई हिस्से लिखे गए। ईश्वरीय गुणों से भरपूर महान और प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे गुरु अंगद देव। सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो लहिणा जी (लहना) भी कहलाते हैं। गुरु अंगद देव का जन्म हरीके नामक गांव (पंजाब) में वैसाख वदी 1, सम्वत 1561 (31 मार्च, सन् 1504) को हुआ था। एक हिंन्दू देवी के मन्दिर की तीर्थयात्रा के दौरान अंगद की भेंट सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक से हुई और उन्होंने उनका शिष्य बनने का फैसला किया। इनको गुरु नानक ने ही इस पद के लिए मनोनीत किया था। 1539 में वह गुरु के पद पर आसीन हुए और उन्होंने शास्त्रीय भाषा संस्कृत की जगह युवाओं को क्षेत्रीय भाषा पंजाबी में शिक्षा देने के लिए विद्यालयों की स्थापना की। गुरु नानक अंगद देव को अपने शिष्यों में सबसे अधिक मानते थे और अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्होंने अंगद को ही अपना उत्तराधिकारी चुना था। गुरु अंगद श्रेष्ठ चरित्रवान व्यक्ति और सिक्खों के उच्चकोटि के नेता थे, जिन्होंने अनुयायियों का 14 वर्ष (1538-52 ई.) तक नेतृत्व किया। शारीरिक शिक्षा में उनका दृढ़ विश्वास था और स्वस्थ शरीर तथा स्वस्थ मस्तिष्क के आदर्श पर ज़ोर देते थे। गुरु अंगद ने सिक्खों…